तुलसी की माला बनाना खुद में एक साधना है, इसलिए इसे शांति, स्वच्छता और श्रद्धा के साथ किया जाता है। नीचे पारंपरिक चरणबद्ध तरीका दिया जा रहा है, जिसे आप जप माला, कंठी माला या ठाकुर जी के लिए माला बनाने में अपना सकते हैं।
"जो व्यक्ति तिलक या गोपीचन्दन (वृन्दावन के कुछ भागों में उत्पन्न होने वाली मुल्तानी मिट्टी के समान एक प्रकार की मिट्टी) से अलंकृत होते हैं, तथा जो अपने सम्पूर्ण शरीर पर भगवान के पवित्र नामों का चिन्ह लगाते हैं, तथा जिनके गले और वक्षस्थल पर तुलसीदल होते हैं, उनके पास यमदूत कभी नहीं आते।"

चरण 1: तैयारी और संकल्प
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सबसे पहले हाथ–मुँह धोकर साफ जगह पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
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तुलसी माता को प्रणाम कर संकल्प लें कि यह माला केवल भगवान के जप, धारण या शृंगार के लिए ही उपयोग होगी।
चरण 2: तुलसी की टहनियाँ चुनना
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केवल सूखी या स्वाभाविक रूप से गिरी/सुखी टहनियाँ ही लें, हरी शाखाएँ तोड़कर उपयोग करना कई परंपराओं में उचित नहीं माना जाता।
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बहुत पतली या बहुत मोटी टहनियों की बजाय मध्यम मोटाई की, बिना सड़न वाली लकड़ी चुनें ताकि दाने मज़बूत बनें।
चरण 3: तुलसी के दाने (Beads) बनाना
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टहनी को छोटे टुकड़ों में 5–8 मिमी के लगभग बराबर–बराबर काटें, ताकि माला में दाने एकसार दिखें।
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अब हर टुकड़े के बीच में पतली ड्रिल, नुकीली सुई या पिन वाइज़ से धीरे–धीरे सीधा छेद करें, ध्यान रहे कि टुकड़ा फटे नहीं।
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चाहें तो बहुत खुरदरे किनारों को हल्का सा स्मूद कर लें, ताकि गले या उँगलियों को चुभन न हो।
चरण 4: धागा चुनना और तैयार करना
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पारंपरिक रूप से मज़बूत सूती (कॉटन) धागा ही इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि यह प्राकृतिक और पवित्र माना जाता है।
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धागे की लंबाई माला की अनुमानित परिधि से लगभग 3 गुना रखें, जिससे बीच–बीच में गाँठें और अंत में बाँधने के लिए पर्याप्त हिस्सा बचे।
चरण 5: तुलसी दानों को पिरोना
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धागे के सिरे पर सुई लगा लें या सिरे को थोड़ा सख्त कर लें ताकि दानों में आसानी से जा सके।
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पहले दाने को पिरोकर उसके ठीक बाद एक छोटी, कसकर बाँधी हुई गाँठ लगाएँ, ताकि वह अपनी जगह फिक्स हो जाए।
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अब एक–एक करके सभी तुलसी दाने पिरोते जाएँ; जप माला के लिए परंपरागत संख्या 108 दाने और एक सुमेरु बीड रखी जाती है।
चरण 6: हर दाने के बीच गाँठ लगाना
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पारंपरिक तरीके में अधिकांश भक्त हर दो दानों के बीच छोटी गाँठ लगाते हैं, जिससे दाने एक–दूसरे से न टकराएँ और जप करते समय अच्छी पकड़ मिले।
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गाँठें भी समान दूरी पर और मध्यम कसी हों, ताकि माला न बहुत ढीली हो, न बहुत कड़ी।
चरण 7: सुमेरु और अंतिम बाँध
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सभी दाने पिरोने के बाद अंत में सुमेरु (थोड़ा अलग या बड़ा दाना) लगाया जाता है, जिसे पारंपरिक रूप से जप के समय पार नहीं किया जाता, केवल दिशा बदलने के लिए संकेत माना जाता है।
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धागे के दोनों सिरों को सुमेरु के पास मज़बूत गाँठ से बाँधें और अतिरिक्त धागा थोड़ा छोड़कर काट दें।
चरण 8: माला की शुद्धि और अर्पण
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तैयार माला को हल्के से साफ कपड़े से पोंछें; चाहें तो बहुत हल्का तिल का तेल लगाकर दानों को चिकना और सुरक्षित बना सकते हैं।
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परंपरा के अनुसार माला को पहले भगवान विष्णु/कृष्ण या अपने इष्ट देव के चरणों में अर्पित किया जाता है, फिर प्रसाद रूप में गले में धारण या जप के लिए ग्रहण किया जाता है।
विशेष बात
उपयोग और संभाल
- माला को हमेशा साफ, सूखी जगह पर रखें; बहुत तीखी धूप या नमी से तुलसी के दाने फट सकते हैं। तुलसी माला को पैर से दूर, आदरपूर्ण स्थान पर रखें और इसे केवल जप, धारण या शृंगार के पवित्र कार्यों में ही उपयोग करें।









